मुक्तक





*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

मुक्तक.. जिन्दगी है क्या.



जिन्दगी है क्या, सुख-दु:ख की कहानी है,
मात्र  कुछ  श्वासों की  धड़कती  रवानी है.
रचेता  चाहे  जो  भी  हो  भव- सागर का,
उसी  सागर  का  यह  एक  बूंद  पानी  है.
जिन्दगी है क्या..

यह पानी उड़कर कभी बन जाता बादल,
पुनः बरसता, आता धरा पर, बनकर जल.
ऐसा   ही  विधान  है  हमारे  जीवन  का,
इसी  क्रम  में  मरती  नहीं  जिन्दगानी  है.
जिन्दगी है क्या..

तन का क्या माटी का प्रज्वलित दीया है,
जब तक तेल-बाती है, तब तक जीया है.
पुनः माटी  में  मिलता  और  जनमता  है,
इसी  प्रकार  काया की  आनी- जानी  है.
जिन्दगी है क्या..

फिर गम क्या उसकी,जिसकी काया जली है,
अहो!  उसने  तो अपनी   काया   बदली  है.
वो  पुनः  आएगा  शिशु  बनकर  आंगन  में,
वह  तो  ब्रह्म- रूप  जीव  चिर   वरदानी  है.

जिन्दगी है क्या, सुख- दु:ख की कहानी है,
मात्र  कुछ  श्वासों  की धड़कती  रवानी है.

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

मुक्तक



निशा  के  इस   सन्नाटे  में  कौन  रोता  है,
जगकर,  फिर  घोर निंद्रा में कौन सोता है.
युग  बीते  पर  ऐसा  मंजर  न  देखा  कभी.
आज पता नहीं, शव किसकी कौन ढोता है.

हाहाकार   मचा  है,  मौत   कर  रही  नर्तन,
काम कुछ न आ रही दवाई, न भजन-कीर्तन.
हे परमपिता! देर न कर, दुख हर, यह न पूछ,
आज   पुकारने   वाला  तू   कौन   होता   है.

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

भारत के लिए लड़ते, आज हमारे वीर.








भारत  के  लिए  लड़ते,  आज  हमारे वीर.
रख के  दिलों में  भारत, माता   की  तस्वीर.
माता  की  तस्वीर,  जो  है  प्राण  से  प्यारी.
यह धरा है जिसकी,  कल्पित  स्वर्ग से न्यारी.
कह अशोक कविराय,मिटे शोक दु:ख आफत.
खुशहाल  रहे सदा,  हमारा  स्वदेश  भारत.

कुणडलिया छंद
(स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड)

                   
  *जयहिंद 🏳‍🌈
    * जय भारत🏳‍🌈

इस घोर संकट में..

इस घोर संकट में.. 
 इस घोर  संकट में,  सभी शुभ सुकून पाते.
देश क्या विदेश तक, तुम अपनापन निभाते.
बन कर पथ-प्रदर्शक, तुम दे रहे सबको राहत,
वरना  सारा  विश्व,  गम से  था बडा़ आहत.
छटेंगे  दुख  के  बादल,  हारना  मंजूर  नहीं.
विश्व-गुरु होगा भारत,वह दिवस अब दूर नहीं.

छप्पय छंद
( स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग,झारखंड)

                    *जयहिंद! 
                      *जय भारत!!

हालात गंभीर हैं तो क्या

हालात गंभीर  हैं  तो क्या,
हम हार सकते नहीं.
एकजुट सब मिलकर लडेंगे,
सब्र खो सकते नहीं.

माना,  डरे सहमें  हैं सभी,
बढ़ रहा है तम अभी.
मगर होगा इसका भी अंत,
आप घबराएँ नहीं.

सच है, 'डर गया सो मर गया,'
जागरूक जीत गया.
विराम दो, मन की उडा़न को,
अनर्थ कर दे न कहीं.

शांत मन से होती साधना,
ईश की आराधना.
वही है एक रक्षक हमारा,
हम उसे भूलें नहीं.

एकजुट सब मिलकर लड़ेंगे,
सब्र खो सकते नहीं.

हरिगीतिका छंद
(स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड)

              *जयहिंद!!
                           * जय भारत!!

देखो! माँ भारती के लाल..

दहशत से भरी फ़िज़ाएं हैं,
बढ़ गई है अत्यधिक पीर.
देखो! माँ भारती के लाल,
पोछ  रहे  हैं  सबके  नीर.

कितने  भामाशाह  बने हैं,
कुछ हैं शिवा,राणा प्रताप.
परहित का धर्म निभाते वो,
हरते   गरीब   का   संताप.

जुझ रही  है मौत से दुनिया,
पडो़सी  चलाता  कटु   तीर.
राम- कृष्ण का भारत है यह,
दिल  में  बसता  है  कश्मीर.

जीत  हमारी  निश्चित   होगी,
आप  नहीं हों तनिक अधीर.
तिमिर का नाश करने निकले,
कई   रूप    में  श्री   रघुवीर.

देखो! माँ भारती के लाल,
पोछ  रहे  हैं सब  के नीर.

*आल्हा छंद*
स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड)

     *जयहिंद!
     जय भारत!

मुक्तक

यह फ़र्ज़ है कि- रोते हुए को हॅसाया जाए, 
राह भटके पथिकों को रास्ता दिखाया जाए.
कौन  जाने वक्त का  तोता क्या भाषा बोले, 
उससे  पहले  सोई  रूह को  जगाया  जाए.

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

मुक्तक


पत्थर की  मूरत भी  पिघल  सकती है, 
सख्त हृदय से करुणा निकल सकती है.
मनुज  ठान  ले मन  में भला  करने को, 
तो  हाथों  की  लकीर बदल  सकती  है. 

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

दहशत से भरी फ़िज़ाएं हैं

दहशत से भरी फ़िज़ाएं हैं,
बढ़ गई है अत्यधिक पीर.
देखो! माँ भारती के लाल,
पोछ  रहे  हैं  सबके  नीर.

कितने  भामाशाह  बने हैं,
कुछ हैं शिवा,राणा प्रताप.
परहित का धर्म निभाते वो,
हरते   गरीब   का   संताप.

जुझ रही  है मौत से दुनिया,
पडो़सी  चलाता  कटु   तीर.
राम- कृष्ण का भारत है यह,
दिल  में  बसता  है  कश्मीर.

जीत  हमारी  निश्चित   होगी,
आप  नहीं हों तनिक अधीर.
तिमिर का नाश करने निकले,
कई   रूप    में  श्री   रघुवीर.

देखो! माँ भारती के लाल,
पोछ  रहे  हैं सब  के नीर.

*आल्हा छंद*
स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड)

                      *जयहिंद!
                                    जय भारत!

धीरज धर मुसाफ़िर


धीरज धर मुसाफ़िर, सुखद मंजिल बहुत दूर है.
पंख विहीन खग की तरह तू बहुत मजबूर है.

विपदा की घड़ी में साथ देता है यहाँ कौन.
इंसां हो गया आज मन से बहुत मगरूर है.

यह दुनिया खडी़ है आज संकट के कगार पर.
हे ईश्वर! कृपा कर, जान पर अहम उपकार कर.
हरित रहे धरा, रौशन रहे हर शहर, हर गाँव.
दुनिया को बचा लो, दनुज क्रोना बहुत क्रूर है.


*स्वरचित- अशोक कुमार सिंह.
हजारीबाग. झारखंड*

जीतना है जंग

जिस तरह हो जीतना है जंग विकट-विषम अभी.
हौसला भी कम नहीं हो, है जिगर में दम अभी.
चीन का यह वार है, हम सब समझते हैं इसे.
सुपरपावर के लिए निर्मित किया है बम अभी.
राक्षस बना वह निरंकुश,कर रहा बहु जुल्म है.
एक है इस पर जगत, पर है नयन कुछ नम अभी.
साथ उनका दे रहे, वो सितमगर शैतान हैं.
देशद्रोही हैं सभी वे, मौत के हैं तम अभी.
अगर ये जुल्मी न होते तो नजारा साफ़ था.
मौत में तबदील ना होती इस तरह गम अभी.
जो लड़ रहे हैं यह समर, उन सपूतों को नमन.
दान दौलत का करें, जो हो सके सो हम अभी.
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

माँ

किसको मैं बेगाना समझूँ,
हर सूरत तेरी सूरत है.
सब दृश्य में तुम्हीं रमी हो,
हर मूरत तेरी मूरत है.
माँ शब्द में त्रिलोक समाया,
सब के सिर पर मां की छाया.
कैसे कोई जन जी सकता,
जब तक स्नेह न पाए काया.
माता की महिमा अपार है,
माँ से ही सकल संसार है.
माँ शब्द जब दृश्य हो जाता,
हरेक शीश वहाँ झुक जाता.
हर गहना तेरा गहना है,
हर रचना तेरी रचना है.
तेरा स्वस्य सारा जगत है,
हर मूरत तेरी मूरत है.
किसको मैं बेगाना समझूँ,
हर सूरत तेरी सूरत है.
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*



समय सबके पास 24 घंटे

मुक्तक

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*