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समय सबके पास 24 घंटे
मुक्तक
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*
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धीरज धर मुसाफ़िर, सुखद मंजिल बहुत दूर है. पंख विहीन खग की तरह तू बहुत मजबूर है. विपदा की घड़ी में साथ देता है यहाँ कौन. इंसां हो गया आ...
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यह फ़र्ज़ है कि- रोते हुए को हॅसाया जाए, राह भटके पथिकों को रास्ता दिखाया जाए. कौन जाने वक्त का तोता क्या भाषा बोले, उससे पहले ...
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इस घोर संकट में.. इस घोर संकट में, सभी शुभ सुकून पाते. देश क्या विदेश तक, तुम अपनापन निभाते. बन कर पथ-प्रदर्शक, तुम दे रहे सबको राह...
शानदार मुक्तक
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