मुक्तक


पत्थर की  मूरत भी  पिघल  सकती है, 
सख्त हृदय से करुणा निकल सकती है.
मनुज  ठान  ले मन  में भला  करने को, 
तो  हाथों  की  लकीर बदल  सकती  है. 

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*

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समय सबके पास 24 घंटे

मुक्तक

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*