धीरज धर मुसाफ़िर, सुखद मंजिल बहुत दूर है.
पंख विहीन खग की तरह तू बहुत मजबूर है.
विपदा की घड़ी में साथ देता है यहाँ कौन.
इंसां हो गया आज मन से बहुत मगरूर है.
यह दुनिया खडी़ है आज संकट के कगार पर.
हे ईश्वर! कृपा कर, जान पर अहम उपकार कर.
हरित रहे धरा, रौशन रहे हर शहर, हर गाँव.
दुनिया को बचा लो, दनुज क्रोना बहुत क्रूर है.
*स्वरचित- अशोक कुमार सिंह.
हजारीबाग. झारखंड*
शिक्षाप्रद
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