किसको मैं बेगाना समझूँ,
हर सूरत तेरी सूरत है.
सब दृश्य में तुम्हीं रमी हो,
हर मूरत तेरी मूरत है.
माँ शब्द में त्रिलोक समाया,
सब के सिर पर मां की छाया.
कैसे कोई जन जी सकता,
जब तक स्नेह न पाए काया.
माता की महिमा अपार है,
माँ से ही सकल संसार है.
माँ शब्द जब दृश्य हो जाता,
हरेक शीश वहाँ झुक जाता.
हर गहना तेरा गहना है,
हर रचना तेरी रचना है.
तेरा स्वस्य सारा जगत है,
हर मूरत तेरी मूरत है.
किसको मैं बेगाना समझूँ,
हर सूरत तेरी सूरत है.
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*
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