जिस तरह हो जीतना है जंग विकट-विषम अभी.
हौसला भी कम नहीं हो, है जिगर में दम अभी.
चीन का यह वार है, हम सब समझते हैं इसे.
सुपरपावर के लिए निर्मित किया है बम अभी.
राक्षस बना वह निरंकुश,कर रहा बहु जुल्म है.
एक है इस पर जगत, पर है नयन कुछ नम अभी.
साथ उनका दे रहे, वो सितमगर शैतान हैं.
देशद्रोही हैं सभी वे, मौत के हैं तम अभी.
अगर ये जुल्मी न होते तो नजारा साफ़ था.
मौत में तबदील ना होती इस तरह गम अभी.
जो लड़ रहे हैं यह समर, उन सपूतों को नमन.
दान दौलत का करें, जो हो सके सो हम अभी.
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*
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