
बढ़ गई है अत्यधिक पीर.
देखो! माँ भारती के लाल,
पोछ रहे हैं सबके नीर.
कितने भामाशाह बने हैं,
कुछ हैं शिवा,राणा प्रताप.
परहित का धर्म निभाते वो,
हरते गरीब का संताप.
जुझ रही है मौत से दुनिया,
पडो़सी चलाता कटु तीर.
राम- कृष्ण का भारत है यह,
दिल में बसता है कश्मीर.
जीत हमारी निश्चित होगी,
आप नहीं हों तनिक अधीर.
तिमिर का नाश करने निकले,
कई रूप में श्री रघुवीर.
देखो! माँ भारती के लाल,
पोछ रहे हैं सब के नीर.
*आल्हा छंद*
स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड)
*जयहिंद!
जय भारत!
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