इस घोर संकट में..

इस घोर संकट में.. 
 इस घोर  संकट में,  सभी शुभ सुकून पाते.
देश क्या विदेश तक, तुम अपनापन निभाते.
बन कर पथ-प्रदर्शक, तुम दे रहे सबको राहत,
वरना  सारा  विश्व,  गम से  था बडा़ आहत.
छटेंगे  दुख  के  बादल,  हारना  मंजूर  नहीं.
विश्व-गुरु होगा भारत,वह दिवस अब दूर नहीं.

छप्पय छंद
( स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग,झारखंड)

                    *जयहिंद! 
                      *जय भारत!!

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मुक्तक

*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*