कवि अशोक प्रियबंधु
मुक्तक
यह फ़र्ज़ है कि- रोते हुए को हॅसाया जाए,
राह भटके पथिकों को रास्ता दिखाया जाए.
कौन जाने वक्त का तोता क्या भाषा बोले,
उससे पहले सोई रूह को जगाया जाए.
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*
1 comment:
Shraddha
May 17, 2020 at 12:11 AM
bahut sundar
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