कवि अशोक प्रियबंधु
मुक्तक
यह फ़र्ज़ है कि- रोते हुए को हॅसाया जाए,
राह भटके पथिकों को रास्ता दिखाया जाए.
कौन जाने वक्त का तोता क्या भाषा बोले,
उससे पहले सोई रूह को जगाया जाए.
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*
1 comment:
Shraddha
May 17, 2020 at 12:11 AM
bahut sundar
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
समय सबके पास 24 घंटे
मुक्तक
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*
मुक्तक
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*
मुक्तक
निशा के इस सन्नाटे में कौन रोता है, जगकर, फिर घोर निंद्रा में कौन सोता है. युग बीते पर ऐसा मंजर न देखा कभी. आज पता नह...
मुक्तक
पत्थर की मूरत भी पिघल सकती है, सख्त हृदय से करुणा निकल सकती है. मनुज ठान ले मन में भला करने को, तो हाथों की लकीर बदल ...
bahut sundar
ReplyDelete