कवि अशोक प्रियबंधु
मुक्तक
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु
हजारीबाग, झारखंड*
1 comment:
dm mishra
July 24, 2020 at 8:34 AM
शानदार मुक्तक
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
समय सबके पास 24 घंटे
मुक्तक
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*
मुक्तक
*स्वरचित- अशोक प्रियबंधु हजारीबाग, झारखंड*
मुक्तक
निशा के इस सन्नाटे में कौन रोता है, जगकर, फिर घोर निंद्रा में कौन सोता है. युग बीते पर ऐसा मंजर न देखा कभी. आज पता नह...
मुक्तक
पत्थर की मूरत भी पिघल सकती है, सख्त हृदय से करुणा निकल सकती है. मनुज ठान ले मन में भला करने को, तो हाथों की लकीर बदल ...
शानदार मुक्तक
ReplyDelete